Supreme Court: ‘दृष्टिहीन व्यक्तियों को सहानुभूति और करुणा के साथ किया जाए व्यवहार’, महत्वपूर्ण मामले पर टिप्पणी
Supreme Court ने मंगलवार को एक महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा कि दृष्टिहीन व्यक्तियों के साथ सहानुभूति और करुणा से व्यवहार किया जाना चाहिए। कोर्ट ने उन याचिकाओं पर अपना निर्णय सुरक्षित कर लिया, जिनमें कुछ राज्यों में न्यायिक सेवाओं में दृष्टिहीन व्यक्तियों को आरक्षण नहीं देने के मामले पर स्वमोटू संज्ञान लिया गया था।
सुप्रीम कोर्ट का बड़ा निर्णय
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने, जिसमें जस्टिस जे. बी. पारदीवाला और जस्टिस आर. महादेवन शामिल थे, अपने फैसले में कहा कि दृष्टिहीन व्यक्तियों को अपनी जिम्मेदारियों को निभाने में सक्षम बनाने के लिए सहानुभूति और करुणा की आवश्यकता है। इस पर अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि दृष्टिहीन व्यक्तियों के साथ विरोधात्मक रवैया नहीं रखा जाना चाहिए। यह टिप्पणी उस समय की गई जब दुनियाभर में ‘अंतर्राष्ट्रीय दिव्यांगजन दिवस’ मनाया जा रहा था, जिससे इस मुद्दे की संवेदनशीलता और अधिक बढ़ गई।
विशेष रूप से दृष्टिहीनों के लिए आरक्षण का मुद्दा
अदालत में वरिष्ठ अधिवक्ता गौरव अग्रवाल, जिन्होंने पीठ के सहायक अमिकस क्यूरी के रूप में काम किया, ने बताया कि दृष्टिहीनता और दृष्टिहीनता की अन्य समस्याओं से ग्रस्त व्यक्तियों को विकलांग व्यक्तियों के लिए निर्धारित आरक्षण से बाहर नहीं रखा जा सकता। उनका कहना था कि जब दिव्यांग व्यक्तियों के लिए आरक्षण का अधिकार है, तो दृष्टिहीन व्यक्तियों को भी इस श्रेणी में रखा जाना चाहिए।
अग्रवाल ने ‘विकलांगता अधिकार अधिनियम 2016’ के अनुच्छेद 34 का हवाला देते हुए बताया कि प्रत्येक सरकारी प्रतिष्ठान में कुल पदों का कम से कम चार प्रतिशत भाग दिव्यांग व्यक्तियों के लिए आरक्षित किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि इसके तहत दृष्टिहीन व्यक्तियों के लिए भी आरक्षण मिलना चाहिए, ताकि वे न्यायिक सेवाओं में अपनी भूमिका निभा सकें।
दृष्टिहीन व्यक्तियों के लिए न्यायिक सेवाओं में आरक्षण की आवश्यकता
दृष्टिहीन व्यक्तियों को न्यायिक सेवाओं में आरक्षण के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्णय सुरक्षित कर लिया है कि दृष्टिहीन व्यक्तियों के लिए उचित आरक्षण सुनिश्चित किया जाए। इससे यह संकेत मिलता है कि न्यायिक सेवाओं में अधिक समावेशिता और समानता को बढ़ावा देने के लिए अदालत सक्रिय रूप से प्रयासरत है।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह निर्णय सामाजिक न्याय की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जो दिव्यांग व्यक्तियों को न्यायिक प्रक्रिया में शामिल होने के समान अवसर देगा। सुप्रीम कोर्ट का यह रुख दिव्यांग अधिकारों की सुरक्षा और संवर्धन के लिए महत्वपूर्ण है।
केरल: सुप्रीम कोर्ट ने छह चर्चों का प्रशासन ‘ऑर्थोडॉक्स’ पंथ को सौंपने का आदेश दिया
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक और महत्वपूर्ण निर्णय में ‘जैकोबाइट सीरियन चर्च’ को केरल के छह चर्चों का प्रशासन ‘मलंकारा ऑर्थोडॉक्स सीरियन चर्च’ पंथ को सौंपने का आदेश दिया। यह विवाद 2017 के फैसले से जुड़ा हुआ था, जिसमें अदालत ने आदेश दिया था कि 1,100 क्षेत्रों और चर्चों पर मलंकारा ऑर्थोडॉक्स पंथ का नियंत्रण होना चाहिए, जैसा कि 1934 के मलंकारा चर्च गाइडलाइंस में उल्लेखित है।
चर्चों के विवाद में नई दिशा
सुप्रीम कोर्ट की पीठ में जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस उज्जल भुयान शामिल थे, जिन्होंने यह आदेश दिया। अदालत ने कहा कि जैकोबाइट सीरियन चर्च के अनुयायी ‘जानबूझकर अवज्ञा’ कर रहे थे और उन्होंने मलंकारा ऑर्थोडॉक्स पंथ के अनुयायियों को चर्चों तक पहुंचने से रोक दिया था। इस मामले में अदालत ने जैकोबाइट पंथ के अनुयायियों को निर्देश दिया कि वे तीन चर्चों का प्रशासन एर्नाकुलम और पलक्कड़ जिलों में मलंकारा पंथ को सौंपें और इस संबंध में एक हलफनामा दायर करें।
सुप्रीम कोर्ट ने चेतावनी दी कि अगर यह आदेश नहीं माने गए तो अवमानना की कार्रवाई की जाएगी। अदालत का यह आदेश दोनों पक्षों के बीच चल रहे संघर्ष को समाप्त करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, क्योंकि यह धार्मिक विवादों को कानूनी तौर पर सुलझाने का प्रयास है।
केरल में धार्मिक विवाद और अदालत का हस्तक्षेप
केरल में चर्चों के बीच यह विवाद दशकों से चला आ रहा है। दोनों पंथों के अनुयायी एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाते आए हैं और कई बार हिंसा भी हुई है। सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय इस विवाद को शांत करने और चर्चों के प्रशासन को अधिक पारदर्शी और कानून के तहत संचालित करने के लिए अहम साबित हो सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में जो आदेश दिया है, वह न केवल धार्मिक स्वतंत्रता और प्रबंधन के अधिकारों के सम्मान के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह देश में धार्मिक मामलों में अदालत के हस्तक्षेप के महत्व को भी रेखांकित करता है। अदालत ने यह स्पष्ट किया है कि कानून का पालन न करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।
सुप्रीम कोर्ट ने आज जो फैसले दिए हैं, वे केवल कानून और न्याय की दिशा में महत्वपूर्ण कदम नहीं हैं, बल्कि समाज के कमजोर वर्गों की रक्षा के लिए भी महत्वपूर्ण हैं। दृष्टिहीन व्यक्तियों के अधिकारों की सुरक्षा और उन्हें न्यायिक सेवाओं में समान अवसर देने का फैसला, उनके लिए एक बड़ी जीत है। वहीं, केरल में चर्चों के विवाद पर कोर्ट का हस्तक्षेप इस बात का संकेत है कि न्यायालय धार्मिक मामलों में भी निष्पक्ष और समर्पित रूप से कार्य कर रहा है।
इन दोनों फैसलों से यह साफ होता है कि सुप्रीम कोर्ट समाज के विभिन्न वर्गों के अधिकारों की रक्षा करने के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध है, चाहे वह दृष्टिहीन व्यक्ति हो या फिर धार्मिक समुदायों के बीच का कोई विवाद।